यह और बात थी कि वे अपने बारे में अपनी जुबां से कुछ कहने से बचते ही रहे। खोद-खोदकर सामने वाले की पूरी कर्म-कुंडली जान लेने की उनकी उत्सुकता के सामने इसकी गुंजाइश कम ही थी। हम तो बस इस अनुपम सानिध्य का मौका पाकर ही धन्य थे।
चलते-फिरते फोन के कैमरे में कैद कुछ पल:
हम घंटा-डेढ़ घंटा बतियाते रहे। लेकिन इस बतरस में अधिक साथ निभाया अभय जी के बड़े भैया, संजय तिवारी जी ने। अपने हाथों में जाम लिए, मजे ले-लेकर घूंट पीते हुए, ब्लॉगिंग की दुनिया के बारे में गहरी दिलचस्पी लेते हुए।