यह और बात थी कि वे अपने बारे में अपनी जुबां से कुछ कहने से बचते ही रहे। खोद-खोदकर सामने वाले की पूरी कर्म-कुंडली जान लेने की उनकी उत्सुकता के सामने इसकी गुंजाइश कम ही थी। हम तो बस इस अनुपम सानिध्य का मौका पाकर ही धन्य थे।
चलते-फिरते फोन के कैमरे में कैद कुछ पल:
.jpg)
.jpg)
.jpg)
हम घंटा-डेढ़ घंटा बतियाते रहे। लेकिन इस बतरस में अधिक साथ निभाया अभय जी के बड़े भैया, संजय तिवारी जी ने। अपने हाथों में जाम लिए, मजे ले-लेकर घूंट पीते हुए, ब्लॉगिंग की दुनिया के बारे में गहरी दिलचस्पी लेते हुए।
.jpg)
2 comments:
अभय जी की दिल्ली यात्रा की धूम मची ही. ये पड़ाव भी रोचक रहा. उनके बड़े भाया हमे किसी अपने की याद दिलाते से लगे.
हमारी पोस्ट पर आपकी टिप्पणी के लिए शुक्रिया
संजय जी
आपका हर ब्लॉग अलग है
अच्छा लगा
Post a Comment